अव्यवस्थाओं का अड्डा बना जिला अस्पताल, बेबस महिलाओं और नवजातों की जान पर खतरा
गुना। जिला अस्पताल का प्रसूति वार्ड अव्यवस्थाओं और लापरवाही का जीता-जागता उदाहरण बन चुका है। यहां न तो मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है और न ही स्वच्छता का ध्यान रखा जा रहा है। हाल ही में हुई एक घटना ने अस्पताल की सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी है। बीती रात 23 मार्च को, आधी रात 2 से 3 बजे के बीच अस्पताल के प्रसूति वार्ड में आवारा कुत्ते बेरोकटोक घूमते नजर आए। उस समय जच्चा-बच्चा गहरी नींद में थे और वार्ड में कोई सुरक्षा गार्ड भी मौजूद नहीं था। इस दौरान कुत्ता बिल्कुल प्रसूताओं के पास पहुंच गया। यह बेहद चिंताजनक स्थिति है, क्योंकि यदि कोई कुत्ता नवजात को उठा ले जाता या किसी प्रसूता पर हमला कर देता, तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेता? अस्पताल प्रशासन की इस लापरवाही के कारण यहां भर्ती मरीजों की जान पर हर समय खतरा मंडरा रहा है।
यह पहली बार नहीं है जब जिला अस्पताल की अव्यवस्थाएं सुर्खियों में आई हैं। इससे पहले भी प्रसूति वार्ड में अवैध वसूली और लापरवाही के मामले सामने आ चुके हैं। अस्पताल की दुर्दशा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां आने वाले मरीज और उनके परिजन खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। गरीब तबके की महिलाएं, जिनके पास निजी अस्पतालों में इलाज कराने का विकल्प नहीं है, मजबूरी में इस सरकारी अस्पताल का रुख करती हैं, लेकिन यहां पहुंचने के बाद उन्हें केवल लापरवाही, गंदगी और असुरक्षा का सामना करना पड़ता है।
अस्पताल में घूमते आवारा कुत्ते सिर्फ नवजात शिशुओं के लिए ही नहीं, बल्कि प्रसव पीड़ा से जूझ रही माताओं के लिए भी खतरा हैं। संक्रमण फैलाने वाले इन कुत्तों के खुलेआम वार्ड में घूमने से कई गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। नवजात शिशु बेहद नाजुक होते हैं और किसी भी तरह के संक्रमण से उनकी जान को खतरा हो सकता है। इसके बावजूद अस्पताल प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है। बड़ी समस्या यह भी है कि अस्पताल में न तो पर्याप्त सुरक्षाकर्मी तैनात हैं और न ही कोई निगरानी तंत्र मौजूद है। रात के समय वार्ड में कोई जिम्मेदार अधिकारी नहीं रहता, जिससे यह असुरक्षा और भी बढ़ जाती है। मरीजों के परिजनों ने इस बारे में कई बार शिकायत की, लेकिन हर बार प्रशासन की ओर से अनदेखी की गई। यह सवाल उठना लाजमी है कि आखिर कब तक यह लापरवाही जारी रहेगी? क्या प्रशासन किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है?
सरकारी अस्पतालों का मुख्य उद्देश्य आम जनता को सुलभ और सुरक्षित चिकित्सा सुविधा प्रदान करना होता है, लेकिन जब वही अस्पताल असुरक्षित हो जाएं, तो गरीबों के पास आखिर और क्या विकल्प बचता है? निजी अस्पतालों की महंगी सुविधाओं का खर्च उठाना हर किसी के बस की बात नहीं होती, इसलिए लोग सरकारी अस्पतालों की ओर रुख करते हैं, लेकिन यहां मिलने वाली अव्यवस्था और असुरक्षा से वे खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। इस समस्या का समाधान तभी संभव है जब प्रशासन अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से ले। अस्पताल में सुरक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए सुरक्षाकर्मियों की तैनाती जरूरी है। इसके अलावा, वार्ड में आवारा कुत्तों के प्रवेश को रोकने के लिए विशेष उपाय किए जाने चाहिए। सफाई व्यवस्था को सख्ती से लागू करना भी बेहद जरूरी है, ताकि संक्रमण का खतरा कम किया जा सके।
अगर इस लापरवाही को जल्द नहीं रोका गया, तो वह दिन दूर नहीं जब कोई मासूम नवजात या प्रसूता इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकाएगी। प्रशासन को अब तुरंत कार्रवाई करनी होगी, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न दोहराई जाएं और अस्पताल को वास्तव में मरीजों के लिए सुरक्षित बनाया जा सके।
